आप एक शांत, निजी जगह में किसी के सामने बैठे हैं। अब तक बातचीत आसान रही है—हंसी, कहानियां, छोटे स्पर्श जो निर्दोष हो सकते हैं या अधिक मतलब हो सकते हैं। वे थोड़ा और करीब झुकते हैं। उनका लहजा बदल जाता है। तारीफें सुझावों में बदल जाती हैं। हवा संकेतों से गाढ़ी हो जाती है।
वे फिर से आपके हाथ तक पहुंचते हैं, इस बार धीमे, पहले से अधिक समय तक पकड़े रहते हैं। उनकी आवाज़ कम हो जाती है, नरम, भारी। "क्या तुम कहीं और अधिक निजी जगह जाना चाहते हो?" वे पूछते हैं।
पल लटका रहता है। आपने हां नहीं कहा है। आपने ना नहीं कहा है। वे अभी भी आपको देख रहे हैं। अभी भी इंतजार कर रहे हैं। अभी भी आगे बढ़ रहे हैं।